2050 तक खत्म हो जाएगा आर्कटिक सागर में बर्फ !

आर्कटिक सागर के घट गये बर्फ, मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बड़ा संकट

आर्कटिक साग़र
Arctic sea

राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (n.c.p.o.r.) की चेतावनी ने पर्यावरणविदों के लिये चिंता खड़ी कर दी है। एनसीपीओआर के अनुसार,  आर्कटिक समुद्र के बर्फ में कमी पाई है। इस घटना से  वाष्पीकरण, वायु आर्द्रता, बादलों के बनने और बारिश में भी काफी वृद्धि हुई है। इसके पीछे की वजह कुछ और नहीं ग्लोबल वार्मिंग है। 1979 से 2018 के बीच 40 सालों में हर दशक -4.7% की दर से कमी आ रही है। सबसे बड़ी गिरावट जुलाई 2019 में दर-13% आयी है। अगर, ऐसे ही बर्फ का घटना शुरू हुआ तो अगले 30 साल के अंदर इस सागर का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा। 

14.06 मिलियन स्क्वायर किमी में फैला है आर्कटिक सागर

Arctic sea

यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका से घिरा यह सागर पूरे साल आंशिक रूप से समुद्री बर्फ से ढंका रहता है. सर्दियों के मौसम में तो यह पूरी तरह बर्फ से ढंक जाता है। यह सागर 14.06 मिलियन स्क्वायर किमी में फैला हुआ है और इसकी गहरायी 1038 मीटर है। इसकी विशालता से अंदाजा से लगाया जा सकता है कि अगर यह सागर खतरे में पड़ जाये तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ जायेगा.

जाड़े में बर्फ निर्माण और गर्मी में पिघलने की मात्रा में आया भारी अंतर

इन 40 सालों के दौरान उपग्रह डेटा से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (n.c.p.o.r.) ने सतही ऊष्मायन रेट और  वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलावों को समझने की कोशिश की तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आये है। पाया गया कि शरद और ग्रीष्म ऋतु की अवधि में बढ़ोतरी ने जलवायु परिवर्तन को प्रभावित किया है। साथ ही जलवायु प्रणाली के मुख्य घटक  जैसे कि ऊष्मा और गति, जल वाष्प तथा वातावरण और समुद्र के बीच के बैलेंस पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। वहीं, जाड़े में बर्फ निर्माण और गर्मी में बर्फ पिघलने की मात्रा में  भारी अंतर आयी है, जो पर्यावरण के लिए बेहद चिंताजनक है।

क्या है खतरा

राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (n.c.p.o.r.) की माने तो बर्फ घटने की यही गति रही तो 2050 तक आर्कटिक सागर में बर्फ खत्म हो जायेगा। यह बहुत ही गम्भीर मामला है। अगर, यही हाल रहा तो समस्त मानव जीवन और पर्यावरण के लिए संकट पैदा हो जाएगा। 

कौन कौन थे टीम में

डॉ. अविनाश कुमार के नेतृत्व में इस टीम में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एनसीपीओआर की जूही यादव और राहुल मोहन शामिल हैं। शोध पत्र जर्नल्स ऑफ नैचुरल हेजार्ड्स में प्रकाशित किया गया है।

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