डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाली पहली महिला एलेना कॉर्नारो पिशोपिया

342 साल पहले आज ही के दिन एलेना बनी दुनिया की पहली महिला डॉक्टरेट

Elena cornikova pischopia
Elena cornikova pischopia image : wikipedia 

आज से 342 साल पहले जब महिलाओं के लिए शिक्षा पाने की सोचना भी मुश्किल बात थी,  उस समय में आज (25  जून) ही के दिन इटली की एलेना कॉर्नारो पिशोपिया ने डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर ली थी। इटली के वेनिस में जन्मी एलेना कॉर्नारो पिशोपिया पाडवा विश्वविद्यालय से 1678 में डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी की उपाधि हासिल कर डॉक्टरेट होने वाली दुनिया की पहली महिला बन गयी। जीवन में संघर्ष और सामाजिक आलोचना को झेलते हुए जिस प्रकार एलेना ने यह सम्मान पाया है, वह आज महिलाओं के लिए किसी गौरव से कम नहीं है। 

माँ-पिता की शादी से पहले हुआ जन्म

5 जून 1646 को एलेना का जन्म उस वक्त हो गया था, जब उसके माता - पिता की शादी भी नहीं हुई थी। एलेना की माँ एक किसान थी और एलेना जियानबेटिस्टा कॉर्नारो-पिशोपिया और उनकी मालकिन ज़ानेटा बोनी की तीसरी संतान थीं। वेनिस में कॉरनारो परिवार की गिनती धनी और इज्जतदार समाज में होती थी। वहां के कानून में कुलीनों से नाजायज बच्चों को प्रतिबन्ध किया गया था। इसलिये एलेना कॉरनारो परिवार की होकर भी इसकी सदस्य नहीं हो सकी।

कम उम्र में ही सीख ली लैटिन, ग्रीक, फ्रेंच और स्पेनिश भाषा

एलेना के टैलेंट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 7 साल की उम्र तक उसने ऑर्कुल सेप्टिलिंग यानी कि सेवेन लैंग्वेज ओरेकल शीर्षक प्राप्त किया।
एलेना इन भाषाओं के साथ साथ  हिब्रू  और अरबी भाषा की भी बड़ी जानकार बन चुकी थी। एलेना ने गणित, दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र का भी अध्ययन किया।

संगीत में भी हासिल की महारत

शिक्षा के अलावा संगीत में  भी एलेना ने कई उपलब्धि हासिल की  उसने वीणा, वॉयलिन, क्लेविकॉर्ड और हरप्सिकोर्ड से तैयार संगीतों के कौशल को पूरी दुनिया ने जाना 20 साल की उम्र आते आते एलेना की रुचि भाषा विज्ञान, भौतिकी और खगोल विज्ञान में बढ़ने लगी। उनकी बड़ी उपलब्धियों में 1669 में उन्होंने स्पेनिश से इतालवी में कारथुसियन भिक्षु लैंस्परगियस द्वारा ईसा मसीह के बोलचाल का अनुवाद करना है। 
1678 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर एलेना कॉर्नारो पिशोपिया यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह दुनिया की पहली महिला बनी।

महज 38 साल की उम्र में निधन

 एलेना कॉर्नारो पिशोपिया की महज 38 साल की उम्र में तपेदिक बीमारी से 1684 में पाडवा में मृत्यु हो गई। संत गिउस्टिना के चर्च में उन्हें दफनाया गया।


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