24 अगस्त: जब पहली बार भारत को गुलाम बनाने की अंग्रेजी सोच ने रखा कदम

 व्यापार के बहाने भारत को गुलाम बनाने आयी ईस्ट इंडिया कंपनी 

1608 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का एक काफिला जब व्यापार के सिलसिले में गुजरात के सूरत में कदम रखा तो किसी ने यह सोचा नहीं था कि यह भारत को गुलाम बनाने की ऐसी मानसिकता का कारोबार करेगा की सोने की चिड़िया कही जाने वाली हिंदुस्तानी धरती गुलामी की जंजीरों से जकड़ जाएगी। इस गुलामी से बाहर निकलने में भारत को 339 साल लग गये और लाखों लोगों को कुर्बानियां देनी पड़ी। 

24 अगस्त 1608 को पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी का आया था प्रतिनिधि

यह वह दौर था जब भारत रेशम, कपास मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक हुआ करता था। यहां के रेशम और सुती की गुणवत्ता उम्दा किस्म की हुआ करती थी। व्यापार के साथ साथ व्यापार के लिहाज से आयी ईस्ट इंडिया कंपनी को बहुत जल्द भारतीयों की उदारता का पता चल गया और पहले तो यहां से रेशम, इंडिगो डाई, कपास, चाय और अफीम का कारोबार किया. फिर, धीरे-धीरे अंग्रेजी विरासत की बीज डालते गये. इसका असर यह हुआ कि गोरों के आगे यहां की शासन व्यवस्था फिसलती चली गयी. भारत में आने के चार साल के अंदर ही मुगल शासक जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए विस्तार का द्वार खोल दिया. 1612 में जहांगीर ने इस ब्रिटिश कंपनी के को सूरत में एक कारखाना और व्यापारिक बंदरगाह बनाने का अधिकार दे दिया, उस दौरान फ्रांसीसी, पुर्तगाली और डच जैसे अन्य यूरोपीय व्यापारियों ने भारत में पैर जमाने की कोशिश की, मगर वह ईस्ट इंडिया कंपनी की भांति अपनी साजिश में सफल नहीं हो सके. इसके ठीक 20 साल बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता में एक कारखाना स्थापित करके भारत के पूर्वी क्षेत्र में भी अपना विस्तार शुरू किया. हालांकि जबतक मुगल शासक और भारतीय कुछ समझ पाते, तबतक बहुत देर हो चुकी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने धीरे धीरे अपनी छोटी सेना बनायी और छोटे छोटे राजा महाराजाओं को लालच देकर उन्हें अपने खेमे में कर एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ाने लगे. 

गोरों के प्रभाव के आगे फिसल कर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारते गये. हालांकि, इस बीच अपनी सत्ता बचाने के लिए कुछ राजे-महाराजे अंग्रेजों से आमने सामने भी हुए. 23 जून 1757 में बंगाल में लड़ी गयी लड़ाई और 22 अक्तूबर 1864 को अंग्रेजों और नवाब सिराजुद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई इनमें से एक थी. मगर, 23 जून 1757 को प्लासी के युद्ध के बाद आधिकारिक रूप से भारत की शासन व्यवस्था ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों चली गयी. इसके ठीक 100 साल बाद 1857 में भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़े गये पहले संगाम  के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की शासन व्यवस्था खत्म कर दी गयी और यह ब्रिटिश राज के नाम से जानी गयी. भारत सरकार अधिनियम 1858 में पारित किया गया था जिसके बाद ब्रिटिश सरकार का भारत के प्रशासन पर सीधा नियंत्रण था. इस बीच भारत में कई लड़ाईयां व विरोध हुए लेकिन, अंग्रेज अपनी डिवाइड एंड रूल का तरीका अपनाते हुए इसे दबाते गये. आखिरकार 90 साल बाद एक लंबे संघर्ष और लोगों की शहादत के बाद भारत को आजादी मिली. 

कैसे बनी ईस्ट इंडिया कंपनी

ईस्ट इंडिया कंपनी एक ब्रिटिश संयुक्त स्टॉक कंपनी थी जिसकी स्थापना 1600 में ईस्ट इंडीज यानी दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए किया गया.  लेकिन इसका मुख्य केंद्र भारतीय उपमहाद्वीप, उत्तर पश्चिम के साथ व्यापार को समाप्त करने के लिए सीमांत प्रांत और बलूचिस्तान रहा.

भारतीयों के लिए एक बड़ी सबक छोड़ गयी ईस्ट इंडिया कंपनी

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने के लिए और भारतीयों को लालच देकर व झांसे में लेकर यहां सालों तक राज किया. भारतीय राजा महाराजा से लेकर कई आम हिंदुस्तानी भी उनकी दासता को स्वीकारते गये और अपने ही लोगों के खिलाफ साजिश में शामिल हो गये. भारत की आजादी को अब 73 साल हो चुके हैं मगर, हम अपनी गुलाम मानसिकता से नहीं उबर सके हैं. हालांकि, अब कोई देश भारत को गुलाम बनाने की हिमाकत नहीं कर सकता है, मगर यहां के विचारों और संस्कृति के साथ एक बार फिर बाजार पर कब्जा कर आर्थिक रूप से गुलाम करने की साजिश रची जा रही है. खासकर चीन अपनी विस्तारवादी नीति को बढ़ाते हुए ऐसी ही साजिश रच रहा है.


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