जानिये, केंद्र सरकार का नया कृषि कानून किसानों के लिए कितना फायदेमंद

किसान संगठन का आंदोलन जारी, विपक्ष खेल रहा अपनी पारी

किसानों की आखिर कैसी दशा देखना चाहेंगे

हमेशा की तरह एक बार फिर केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गये कृषि कानून के विरोध और समर्थन की अलग अलग  तस्‍वीरें देखने को मिल रही है । हरियाणा और पंंजाब के अलावा  कुछ राज्‍यों मेें किसान आंंदाेलन कर रहे हैैं।  कल तक लोकतंत्र को खतरे में बताने वाले विपक्ष ने भी कानून के विरोध में राज्‍यसभा के अंदर उपसभापति के समक्ष जो हरकत की, क्‍या यह एक लोकतांत्रिक मर्यादा कही जा सकती है । क्‍या यह विरोध वाकई किसानों के हित के लिए की जा रही है या फिर खिसकते राजनीतिक जमीन को बचाने की एक जद़दोजहद है, यह जानना सबके लिए जरूरी है। सवाल यह भी उठता है कि जब कांग्रेस पार्टी अपनी सरकार में संसद में किसानों के लिए ऐसे कानून की जरूरत  बता रही थी, तो आखिर आज ऐसी क्‍या नौबत आ गयी कि कांग्रेस के साथ पूरा विपक्ष इसके विरोध मेंं आंदाेेलन कर रहा है। यहां तक कि केंद्र में भाजपा की एक सहयोगी पार्टी अकाली दल ने भी इस कानून से किनारा कर लिया है । क्‍या केंद्र सरकार वाकई में यह कानून प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जबरन ला रही है, या फिर यह कानून किसानों की आर्थिक स्‍थिति सुधारने में अपनी बड़ी भूमिका निभायेगा, यह भविष्‍य की गर्भ में छुपा एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब कुछ महीनों में ही मिलने लगेगा ।

 कुछ पार्टियों के लिए यह कानून राजनीतिक मुद्दा बन गया है तो केंद्र सरकार की शुरू से आलोचना करने वाले कुछ मीडिया संस्‍थानों और सोशल मीडिया चलाने वालों के लिए एक मौका । इन सबके बीच वह किसान कहीं पीछे छूट जा रहा है जो आज भी दो मुट्ठी अनाज को उपजाने के लिए अपनी जमीन, अपनी संपत्‍ति और यहां तक कि पत्‍नी के साथ बेटी की शादी के जेवरात तक गिरवी रख देता है । इसलिए, कानून के समर्थन और विरोध से पहले बिना किसी राजनीतिक बहकावे में आकर यह जानना ज्‍यादा जरूरी है कि यह किसानों के लिए कितना फायदेमंद या नुकसानदेह है ।

आसान शब्‍दों में जानें क्‍या है नया कृषि कानून

कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020

  • नये कृषि कानून के लागू होने के बाद किसानों की मंडी पर निर्भरता खत्‍म हो जायेगी । किसान अपने अनाज व सब्‍जियों को मंडी के बाहर सीधे व्‍यापारी को बेच सकेंगे । इससे किसान अपने अनाज का उचित मूल्‍य निर्धारण कर व्‍यापारी को बेचने को स्‍वतंत्र होंगे । 
  • किसान अपनी उपज को न केवल राज्‍य के भीतर बल्‍कि, राज्‍य के बाहर बेच सकते हैं । इसका उद्देश्‍य किसानों को अपनी उपज की बेहतर व्‍यवस्‍था और अवसर प्रदान करना है, ताकि वे आत्‍मनिर्भर होकर अपनी उपज को गांव, कस्‍बे व शहर से निकल कर दूसरे राज्‍यों तक पहुंचा सकें ।
  • ई-ट्रेडिंग के जरिये किसान मंडियों के अलावा व्‍यापारियों से सीधे जुड़ सकेंगे और मॉल तक उचित मूल्‍य पर बिना किसी बिचौलिये के उपज बेच सकेंगे । इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहना होगा और उनके लिए आमदनी का बेहतर अवसर प्रदान होगा । 

विपक्ष की आशंका:

  1. कृषि कानून लागू होने के बाद किसान अपनी उपज को मंडियों के बाहर बेचेंगे, इससे मंडियां खत्‍म हो जायेंगी। किसानों के लिए उपज बेचने का विकल्‍प समाप्‍त हो जायेगा।  
  2.  इस बिल के आने के बाद अनाज की न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य प्रणाली खत्‍म हो जायेगी । एमएसपी के समाप्‍त होने से व्‍यापारी अपने अनुसार अनाज की कीमत निर्धारित करेंगे, जिससे किसानों को नुकसान होगा । 
  3. बिल के लागू होने के बाद सरकारी ट्रेडिंग पोर्टल ई-नाम बंद हो जायेंगी और सारा कुछ व्‍यापारियों के नियंत्रण में चला जायेगा ।  

सरकार का दावा: 

  1. किसानों के लिए उपज बेचने का विकल्‍प खुला रहेगा । किसान अपनी सुविधा और फायदे के हिसाब से अपनी उपज मंडियों या व्‍यापारियों को बेच सकेंगे ।  इससे उन्‍हें फायदा होगा और मंडियां भी बंद नहीं होंगी । 
  2. अनाज का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य समाप्‍त नहीं होगा और न ही कीमतों पर व्‍यापारियों का नियंत्रण रहेगा । बल्‍कि, जल्‍द ही सरकार अनाज का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की घोषणा करेगी । 
  3. सरकारी पोर्टल ई-नाम भी पहले की तरह जारी रहेगा । ताकि, किसानों के लिए हर परिस्‍थिति में विकल्‍प उपलब्‍ध होगा और ऑनलाइन भी अपने कृषि उत्‍पादों को बेचने की सुविधा मिलेगी । 

कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020

  • इस विधेयक में किसानों को सीधा व्यापारियों, कंपनियों, प्रोसेसिंग यूनिट, निर्यातकों से जोड़ा जाएगा. 
  • साथ ही कॉन्ट्रेक्ट द्वारा किसानों को उपज से पहले ही दाम निर्धारित करने का मौका मिलेगा. अगर, मान लिया अनाज का दाम बढ़ भी जाये तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ अतिरिक्त फायदा होगा.

विपक्ष की आशंका:

  • कॉन्ट्रेक्ट व्यवस्था लागू होने के बाद किसान कमजोर होंगे और अनाज की कीमत तय नहीं कर सकेंगे.
  • छोटे किसानों के लिए कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग करना चुनौती होगी और कंपनियां और व्यापारी उनसे दूरी बना सकते हैं.
  • भुगतान व अनाज की कीमत को लेकर किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियां फायदा लेंगी.

सरकार का दावा:

  • विधेयक से बाजार की अनिश्चितता से किसान बच सकेंगे. कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में कीमत पहले तय होने से इसमें अंतर होने पर किसानों को ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा. किसानों को अपनी इच्‍छा के अनुसार कॉन्‍ट्रेक्‍ट करने की आजादी होगी।   
  • यह विधेयक किसानों तक अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी,  कृषि यंत्र और उन्नत खाद बीज उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. इससे किसानों को समय पर संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध होंगी.
  • किसानों को अधिकतम तीन दिनों के अंदर भुगतान प्राप्‍त होगा।  भुगतान और अन्‍य किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में 30 दिनों के अंदर स्‍थानीय स्‍तर पर ही निबटारा किया जा सकेगा। किसानों को कोर्ट कचहरी का चक्‍कर नहीं काटना पड़ेगा।
  • फसलों के उपज और नये नये रिसर्च के साथ नयी तकनीक से किसान समृद्ध होंगे और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।
  • देश में तैयार हो रहे 10 हजार से अधिक एफपीओ किसानों को जोड़कर उनकी फसल का उचित मूल्‍य दिलाने में अपनी भूमिका निभायेंगे।
  • कॉन्‍ट्रेक्‍ट के बाद किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए व्‍यापारियों का चक्‍कर नहीं काटना पड़ेगा। किसानों के पास आकर व्‍यापारी उपज ले जा सकेंगे। 

 

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020

  • इसमें अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज एवं आलू आदि को अत्यावश्यक वस्तु की सूची से हटाया जायेगा।
  • 50 फीसदी से अधिक मूल्‍य वृद्धि को छोड़कर इनके स्‍टॉक की सीमा तय नहीं किया गया है। जिससे कृषि के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिले और कीमतों में स्‍थिरता बनी रहे।
  • किसानों की उपज के स्‍टॉक और प्रोसेसिंग की क्षमता बढ़ायी जायेगी। जिससे कि किसान अपनी उपज को सुरक्षित रखकर बेच सकें। 

विपक्ष की आशंका:

  • स्‍टॉक करने की कोई निर्धारित सीमा नहीं होने के कारण बड़ी कंपनियां जरूरी वस्‍तुओं का भारी स्‍टॉक करेंगी, इससे उनका हस्तक्षेप बढ़ेगा और ब्‍लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा।

सरकार का दावा:

  • किसानों की उपज के दाम बढ़ने की स्‍थिति में सरकार के पास इसे नियंत्रित करने का पहले की तरह पावर होगा। इससे कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा और पारदर्शिता आयेगी।
  • फूड प्रोसेसिंग और कोल्ड स्टोरेज के क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा। इससे किसानों को एक बेहतर इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर मिलेगा और खेती को आय का एक बेहतर जरिया बना सकेंगे। 
  • निवेश बढ़ने से किसानों को फसल खराब होने की आंशका नहीं रहेगी। वे अपनी फसलों को और अधिक बेफिक्र होकर उपजा सकेंगे। इससे भ्रष्‍टाचार पर भी रोक लगेगी।  

विश्‍लेषण: आजादी के बाद से आज तक किसान और मजदूर चुनावी मुद़दा बनते आये हैं। हरित क्रांति के बाद भी पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के हरियाणा से सटे सीमावर्ती इलाकों को छोड़कर आज भी किसानों की हालत में सुधार नहीं हो सका है। खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसान आज भी बेबस और लाचार हैं। किसानों के लिए अब भी कोई ठोस और बड़े कदम नहीं उठाये गये हैं। ऐसे में यह कानून किसानों के लिए एक नयी क्रांति बन सकती है। बशर्तेेे, सरकार किसानों को उनकी जमीन की सुरक्षा और अनाज के ससमय भुगतान की गारंटी दे। रही बात विरोध की तो यह लाजिमी है कि विपक्ष अगर सत्‍ता के किसी फैसले को स्‍वीकार कर ले तो उनकी राजनीतिक जमीन खिसक जायेगी। इसलिए, किसानों के आंदोलन के नाम पर सियासी जमीन तलाशती पार्टियों को उम्‍मीद है कि आने वाले दिनों में होने वाले चुनाव से उनकी डूबती नैया को सहारा मिल जाये।शायद यही कारण है कि इस आंदोलन को धारदार बनाकर सत्‍ता का समीकरण तैयार बनाने की कोशिश में पार्टियां जुटी हैं। 

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