जानियें, देवघर में क्यों बढ़ जाता है बसंत पंचमी का महत्व

 मिथिलांचल और बाबानगरी के बीच अनूठा रिश्ता

deoghar


बसंत पंचमी के दिन द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ का तिलकोत्सव की परंपरा निभायी जाती है। यह परंपरा सदियों से निभायी जा रही है। मिथिलांचल के लोग भोलेनाथ को अपना दामाद मानते हैं. बसंत पंचमी पर बाबा के तिलक के लिए पूरी मिथिलानगरी देवघर में बस जाती है। बच्चे, महिलाएं, पुरुष, वृद्ध हर उम्र के लोग बड़े-बड़े भारी-भरकम कांवर लेकर देवघर पहुंचते हैं. इन्हें प्यार से तिलकहरुआ भी कहा जाता है। शहरी क्षेत्र के सरकारी स्कूल प्रांगण, और सरकारी कार्यालय के परिसर समेत सड़क किनारे व खाली मैदानों में डेरा जमा लेते है। यह अदभुत नजारा काफी कम देखने लायक होता है। कड़ाके की ठंड में तंब के नीचे सोना, अलाव जलाकर रात गुजारना, बड़ी-बड़ी हांडियों में खाना पकाना और सामूहिक रूप से प्रेमभाव के साथ भोजन करना और बीच-बीच में मैथिली भाषा में भोलेतनाथ का भजन-कीर्तन व शादी के गीत गाकर अपना समय बिताना यह कठिन तप अपने भोलेनाथ के लिए करते हैं। यह सिलसिला बसंत पंचमी से एक दिन पहले तक चलता है। बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ पर पुजारी द्वारा परंपरा के अनुसार तिलक चढ़ाने के बाद  ये तिलकहरुए शिवलिंग पर अबीर चढ़ाते हैं। इसके बाद मंदिर प्रांगण में सभी तिलकहरुए पूरे जश्न में रम जाते हैं। यह दृश्य काफी मनमोहक होता है। बाबा के तिलकोत्सव पर मिथिला से बाबाधाम का अनूठा रिश्ता जुड़ जाता है।

माघ महीने में तिलक और फाल्गुन में बाबा का विवाह


 माघ शुक्ल की पंचमी के दिन बाबा को दूल्हा के रूप में चुनने के बाद फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि के अवसर पर बाबा का मां पार्वती से विवाह होता है। यह भी एक अद्भुत संयोग है कि इस साल बसंत पर बाबा के तिलकोत्सव के साथ पंचक समाप्त हो जायेगा और महाशिवरात्रि के दिन पंचक शुरू हो जायेगा. देवघर में महाशिवरात्रि के अवसर पर 1994 से  शुरू हुई शिव बरात की परंपरा इस साल कोविड 19 की वजह से यह नहीं निभायी जायेगी। समिति ने शिवरात्रि महोत्सव नहीं मनाने का निर्णय लिया है। महाशिवरात्रि पर निकाली जाने वाली शिव बरात का स्वरूप समय के साथ बदलता गया और अब इसने एक भव्य रूप ले लिया है। शिव बरात को देखने के लिए लाखों की आबादी सड़क किनारे दूल्हा बने भोलेनाथ और उनके साथ बराती बनकर चलने वाले देवी-देवताओं व भूत-बेताल को देखने उमड़ पड़ती है. लेकिन, कोरोना संक्रमण की वजह से इस साल बाबा मंदिर में रोहिणी के मोर मुकुट लाकर बाबा के विवाह की पुरानी परंपरा निभायी जायेगी.

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