देवघर की यातायात व्यवस्था पर न मिटने वाला कलंक

जाम ने ले ली इस मासूम की जान

प्रतीकात्मक तस्वीर

महज पांच से सात किमी के दायरे में सिमटे देवघर शहर की ट्रैफिक व्यवस्था लोगों के लिए सिर दर्द बन चुकी है। यहां का ट्रैफिक जाम न केवल लोगों की परेशानी बढ़ा रहा है, बल्कि यह जानलेवा भी हो चुका है। गुरुवार को 40-50 मिनट के जाम ने एक अबोध नवजात की जान ले ली, जो छह दिन पहले एक मां की खुशियों की किरण बनकर गर्भ से इस दुनिया में आया था। 
गुरुवार को चकाई निवासी आजाद कुमार के नवजात की स्थिति बिगड़ने पर वीआईपी चौक स्थित एक नर्सिंग होम से एम्बुलेंस से सदर अस्पताल लाया जा रहा था। इसी क्रम में झरना चौक से ठीक पहले सर्राफ स्कूल से लेकर झौंसागढ़ी हनुमान मंदिर तक लगे जाम में एंबुलेंस फंस गई।  सर्राफ स्कूल से झरना चौक के बीच जाम में नवजात काफी देर तक तड़पता रहा। एम्बुलेंस चालक ने सायरन बजाते हुए गाड़ी से निकल कर रास्ता क्लियर करने की कोशिश की, मगर वह असफल रहा। किसी तरह एक से डेढ़ किमी की दूरी 40-50 मिनट में पूरी कर एम्बुलेंस सदर अस्पताल पहुंची, जहां डॉक्टर ने देखते ही मृत घोषित कर दिया। 
मानवता हुई शर्मसार
जिस एम्बुलेंस को वीआईपी चौक से झरना मोड़ तक पहुंचने में चंद मिनट भी नहीं लगे, उसे जाम के कारण महज एक से डेढ़ किमी की दूरी पूरी करने में 40-50 मिनट लग गए। इस पूरे घटनाक्रम का सबसे अमानवीय पहलू यह रहा कि जाम में फंसे एम्बुलेंस को रास्ता देने के लिए किसी ने भी इंसानियत नहीं दिखाई। शायद, उस मासूम की जान से अधिक लोगों को अपने घर या कहीं दूसरी जगह पहुँचने की जल्दबाजी थी।
देवघर की ट्रैफिक व्यवस्था पर बड़ा कलंक
जाम के कारण मासूम की गयी जान ने देवघर की ट्रैफिक व्यवस्था पर वह कलंक लगा दिया, जिसका शायद ही कोई पाश्चाताप हो सके। ट्रैफिक जिला घोषित होने के बाद शहर में लगने वाला जाम यहां के लोगों के लिए नासूर बन चुका है। पुलिस का पूरा ध्यान केवल चेकिंग अभियान चलाकर राजस्व उगाही में लगा होता है। जबकि, जाम की समस्या से निबटने में यहां कि पुलिस पूरी तरह नकारा साबित रही है। 
सड़कों का हुआ अतिक्रमण और निगम केवल राजस्व वसूली में व्यस्त
जब से देवघर नगर निगम को करोड़ों का भवन मिला है, यहां के अधिकारियों ने जनता की समस्याओं से एक तरफ से किनारा कर लिया है। गद्देदार कुर्सियों पर बैठे निगम के ये मठाधीश केवल राजस्व वसूली में लगे हैं। शहर की सड़कों का अतिक्रमण हो रहा है और ये बन्द कमरे से शहर को अतिक्रमणमुक्त करने का आदेश जारी कर अखबार की हेडलाइन में जगह बना रहे हैं। अगर, निगम के अधिकारी सड़क को अतिक्रमण मुक्त करने के लिये जिम्मेदारी से अभियान चलाते और भवन निर्माण सामग्रियों को हटाया जाता तो शायद वह मासूम आज अपनी माँ की कोख में होता। क्योंकि, इस जाम की सबसे बड़ी वजह सड़क पर गिरे वह गिट्टी और बालू थे, जो वाहनों को अपना रास्ता तय करने में बाधा डाल रहे थे। 

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