Rahul Gandhi : अपनी ही पार्टी के लिए चुनौती बन रहे राहुल गांधी

चुनावों में हार ही कांग्रेस का 'उपहार'


हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया,
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
हाल के चुनावों में कांग्रेस की हालत देखकर ऊपर लिखे साहिर लुधियानवी के गीत प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे कांग्रेस पार्टी के नेता और गांधी परिवार के चिराग राहुल गांधी पर बिल्कुल सटीक बैठते हैं। एक समय था जब गांधी परिवार भारतीय राजनीति का स्तंभ हुआ करता था। भारत के 28 राज्यों में अधिकतर में सत्ता का नियंत्रण कांग्रेस पार्टी के हाथों में हुआ करता था. राज्य से लेकर पूरे देश की राजनीति की दशा और दिशा कांग्रेस पार्टी के ही इर्द-गिर्द तय होती थी, मगर क्षेत्रीय पार्टियों के तेजी से उभरने और राहुल गांधी के हाथों में नेतृत्व का कमान सौंपने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी की हालत बदतर होती जा रही है। आजादी के बाद भले ही भारत में राजघरानों की परंपरा समाप्त हो गयी, मगर भारतीय राजनीति में अब भी वंशवाद की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि इसके पौधे भले ही कमजोर हों, मगर इनके समर्थक अबभी इसमें अपनी छांव तलाश रहे हैं। वर्तमान समय में कुछ ऐसी ही हालत कांग्रेस पार्टी की है. 

राहुल का कद बढ़ाने में छोटी होती गयी कांग्रेस पार्टी

2014 में भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व नरेंद्र मोदी की इंट्री के बाद और कांग्रेस में राहुल गांधी के कद को बढ़ाने की कोशिश में कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके लिए राजनीतिक पटरी बिछाने की जद्दोजहद करता रहा, मगर राहुल के बचकाने बयान और राजनीतिक अपरिपक्वता ने पार्टी की हालत और भी बदतर कर दी है. इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता जा रहा है. इसके बावजूद कांग्रेस के शीर्ष से निम्न स्तर के नेता जमीनी हकीकत से दूर गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी साबित करने में लगे हैं। 

हार को नहीं पचा सकी कांग्रेस, तीनों राज्यों को बता दिया छोटा

मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा। इन राज्यों में चुनावों की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस पार्टी #INC के शीर्ष नेताओं ने गंभीरता नहीं दिखायी। इससे जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी निराश हो गये थे। इधर, चुनाव और परिणामों का दौर  चल रहा था और उधर राहुल गांधी परिवार के साथ गुलमर्ग में मजे ले रहे  थे। अपनी हार को छिपाने और राहुल गांधी के बचाव में इन राज्यों को छोटा बताकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ऐसा बयान दे दिया, जिसे अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा जरूर भुनायेगी।

हिंदू बनने का  बहाना और उन्हीं पर निशाना

धर्म और राजनीति आदिकाल से ही एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। इसे चाहकर भी झुठलाया नहीं जा सकता। किसी भी देश में चुनाव या शासन व्यवस्था की बात करें तो वहां धर्म एक मजबूत स्तंभ रहा  है, भले ही वह देश खुद काे लाेकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप साबित करने की कितनी ही काेशिशें कर ले। पश्चिमी देश और इस्लामिक बहुल देश के जीते-जागते उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया में एकमात्र सनातन बहुल राष्ट्र भारत में सनातन धर्म और सनातनियों पर अंगुली उठाकर एक विशेष समुदाय को खुश की राजनीति बहुत पुरानी है। लेकिन, वोटबैंक के लिए तुष्टिकरण की इस राजनीति को आजादी के बाद से गांधी परिवार ने हथियार बनाकर लंबे समय तक राज किया और यही कोशिश सोनिया गांधी के नेतृत्व में और चरम पर आ गया, जिसे राहुल  गांधी आगे बढ़ा रहे हैं। चुनावी प्रचार में हिंदुओं पर निशाना और चुनाव के वक्त मंदिरों के दर्शन और खुद को हिंदु बताने का ढोंग लोगों को रास नहीं आ रहा। यही वजह है कि सनातन धर्म पर विश्वास रखने वाले कांग्रेस पार्टी से दूर होते गये और जहां भी उन्हें वोट मिला वह या तो उसके विपक्षी दल या फिर दूसरी पार्टी की सत्ता से नाराजगी प्रमुख वजह रही।

आने  वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी का भविष्य

वर्तमान समय में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सत्ता सिमट कर रह गयी, जबकि बिहार, झारखंड समेत छह राज्यों में पार्टी एक सहयोगी बनकर ही रह गयी है। इन राज्यों में भले ही कांग्रेस पार्टी सत्ता से जुड़ी है, मगर हकीकत यह है कि कोई भी क्षेत्रीय दल उसे भाव नहीं दे रहा है। आने वाले समय में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और तेलंगना में चुनाव होने हैं, इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अपने बचे हुए गढ़ को सुरक्षित रखना कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। खासकर, अगले साल लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस नेतृत्व अपना पूरा दमखम लगाने की कोशिश करेगी, क्योंकि राज्य की सत्ता से ही लोकसभा की सीटें जीतने की उम्मीद कर सकती है।


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